2 Samuel 15
1 इस घटना के पश्चात् अबशालोम ने रथ, घोड़े और आगे-आगे दौड़ने वाले पचास धावक अपने पास रख लिए।
2 वह सबेरे उठता, और नगर के प्रवेश-द्वार पर एक ओर खड़ा हो जाता। जब किसी मनुष्य के पास मुकदमा होता, और वह राजा के पास न्याय-निर्णय के लिए जाता था तब अबशालोम उसे बुलाता, और उससे यह पूछता, ‘तुम किस नगर के रहने वाले हो?’ वह उत्तर देता, ‘आपका सेवक इस्राएल के अमुक कुल का है।’
3 अबशालोम उससे कहता, ‘देखो, तुम्हारा मुकदमा उचित और न्याय-संगत है। परन्तु राजा की ओर से तुम्हारी बात को सुनने वाला कोई नहीं है।’
4 अबशालोम आगे कहता, ‘काश! मैं इस देश का न्यायकर्ता नियुक्त होता। तब जिस व्यक्ति के पास मुकदमा अथवा वाद-विवाद होता तो वह मेरे पास आता और मैं उसका निष्पक्ष न्याय करता।’
5 जब कोई मनुष्य उसके समीप आता और भूमि पर गिरकर साष्टांग प्रणाम करता, तब वह अपना हाथ बढ़ाकर उसे रोक लेता और उसका चुम्बन लेता था।
6 जितने इस्राएली राजा के पास न्याय के लिए आते थे, अबशालोम उनके साथ यही व्यवहार करता था। यों अबशालोम ने इस्राएलियों को बहका कर उनका हृदय अपनी ओर कर लिया।
7 इस प्रकार चार वर्ष बीत गए। तब अबशालोम ने राजा दाऊद से कहा, ‘कृपाकर मुझे हेब्रोन नगर जाने दीजिए। मैंने हेब्रोन नगर में प्रभु की मन्नत मानी थी। मैं वहाँ अपनी मन्नत पूरी करूँगा।
8 जब मैं, आपका सेवक, सीरिया देश के गशूर नगर में था तब मैंने यह मन्नत मानी थी, “यदि प्रभु मुझे यरूशलेम वापस ले जाएगा तो मैं हेब्रोन नगर में बलि चढ़ाऊंगा, और प्रभु की आराधना करूँगा।”
9 राजा ने उससे कहा, ‘सकुशल जाओ।’ अत: वह तैयार हुआ और हेब्रोन नगर को चला गया।
10 अबशालोम ने इस्राएल के सब कुलों के पास गुप्तचर भेजे। उसने उनके द्वारा यह सन्देश भेजा, जैसे ही तुम ‘नरसिंघे का स्वर सुनो, तुम यह कहना: “अबशालोम हेब्रोन नगर में राजा है!” ’
11 अबशालोम के साथ दो सौ पुरुष यरूशलेम नगर से गए थे। ये अतिथि थे। ये निष्कपट हृदय से गए। इन्हें इस सम्बन्ध में कुछ भी मालूम नहीं था।
12 जब अबशालोम बलि चढ़ा रहा था तब उसने अहीतोफल को उसके नगर, गिलोह से बुलाया। अहीतोफल दाऊद का मन्त्री था। वह गिलोह नगर में रहता था। इस प्रकार षड्यन्त्र बल पकड़ता गया। अबशालोम के सहयोगियों की संख्या बढ़ती गई।
13 एक सन्देश-वाहक दाऊद के पास आया। उसने दाऊद को यह बताया, ‘इस्राएल प्रदेश के लोग अबशालोम का अनुसरण करने लगे हैं।’
14 अत: दाऊद ने अपने दरबारियों को जो उसके साथ यरूशलेम में थे, यह आदेश दिया, ‘तैयार हो जाओ, हम अविलम्ब भाग चलें। अन्यथा हम अबशालोम के आने पर भाग न सकेंगे। शीघ्र चलो। ऐसा न हो कि वह अचानक हमें आ घेरे, हमारा अनिष्ट करे और नगरवासियों को तलवार से मौत के घाट उतारे।’
15 दरबारियों ने राजा से कहा, ‘महाराज, हमारे स्वामी, हम आपके निर्णय के अनुसार कार्य करेंगे। हम प्रस्तुत हैं।’
16 अत: राजा दाऊद महल के बाहर निकला। उसके साथ उसका राजपरिवार था। उसने महल की देखभाल करने के लिए दस रखेल छोड़ दीं।
17 राजा बाहर निकला। उसके साथ सब लोग निकले। राजा अन्तिम मकान के सम्मुख रुका।
18 उसके सब दरबारी उसके समीप खड़े हो गए। करेत और पलेत के रहने वाले अंगरक्षक, इत्तय, और गत नगर के रहने वाले छ: सौ सैनिक, जो इत्तय के साथ आए थे, राजा के सामने से गुजरे।
19 राजा ने गत नगर के रहने वाले इत्तय से पूछा, ‘तुम हमारे साथ क्यों जा रहे हो? लौट जाओ। नए राजा के साथ रहो। तुम विदेशी हो। इसके अतिरिक्त तुम अपने देश से निर्वासित हो।
20 तुम कल ही आए थे। क्या मैं आज ही तुम्हें अपने साथ भटकने के लिए ले जाऊं; जब कि मैं स्वयं नहीं जानता हूँ कि मैं कहाँ जा रहा हूँ? लौट जाओ, और अपने साथ अपने देश-वासियों को भी ले जाओ। प्रभु की करुणा और सच्चाई तुम्हारे साथ रहे।’
21 किन्तु इत्तय ने राजा को यह उत्तर दिया, ‘जीवन्त प्रभु की सौगन्ध! महाराज, मेरे स्वामी की सौगन्ध! महाराज, आप जिस स्थान में रहेंगे, आपका यह सेवक भी वहाँ रहेगा। वह जीवन में, और मृत्यु में अपने महाराज, स्वामी का साथ देगा।’
22 तब दाऊद ने इत्तय से कहा, ‘अच्छा, जाओ।’ अत: वह अपने सब लोगों और बाल-बच्चों के साथ आगे बढ़ गया।
23 समस्त देश उच्च स्वर में रो पड़ा। राजा दाऊद किद्रोन घाटी में खड़ा था, और सब लोग उसके सामने से गुजरते हुए निर्जन प्रदेश की ओर चले गए।
24 तब पुरोहित एबयातर आया। उसके पश्चात् सादोक भी आया। सादोक के साथ उपपुरोहित लेवीय थे, जो परमेश्वर के विधान की मंजूषा उठाए हुए थे। जब तक सब लोग नगर से गुजर नहीं गए तब तक वे परमेश्वर की मंजूषा एबयातर के पास रखे रहे।
25 राजा ने सादोक को आदेश दिया, ‘परमेश्वर की मंजूषा को नगर में वापस ले जाओ। यदि मैं प्रभु की कृपा-दृष्टि प्राप्त करूँगा तो वह मुझे इस नगर में वापस लाएगा और मुझे अपनी मंजूषा और उसके निवास-स्थान के फिर दर्शन कराएगा।
26 पर यदि प्रभु यों कहेगा: “मैं तुझसे प्रसन्न नहीं हूँ” तो भी मैं उसकी इच्छा को स्वीकार करूँगा। जो उसकी दृष्टि में भला लगे, वही मेरे साथ करे।’
27 राजा ने पुरोहित सादोक से यह भी कहा, ‘तुम और एबयातर अपने पुत्रों के साथ सकुशल नगर को लौट जाओ। तुम अपने पुत्र अहीमास को, तथा एबयातर के पुत्र योनातन को लेकर जाना।
28 जब तक तुम्हारी ओर से मुझे समाचार नहीं मिलेगा, और मुझे सब बातें ज्ञात नहीं होंगी, तब तक मैं निर्जन प्रदेश के मैदान में ठहरा रहूँगा।’
29 अत: सादोक और एबयातर परमेश्वर की मंजूषा को यरूशलेम नगर वापस ले गए। वे वहीं रह गए।
30 दाऊद जैतून पहाड़ पर चढ़ने लगा। वह रो रहा था। वह नंगे पैर था। उसका सिर ढका था। जो लोग उसके साथ थे, वे भी अपना सिर ढांपे हुए थे। वे रोते हुए पहाड़ पर चढ़ रहे थे।
31 दाऊद को यह समाचार मिला: ‘षड्यन्त्रकारियों में अहीतोफल भी है।’ दाऊद ने कहा, ‘हे प्रभु, अहीतोफल की सम्मति को मूर्खतापूर्ण सम्मति में बदल दे।’
32 जब दाऊद पर्वत के शिखर पर पहुँचा, जहाँ परमेश्वर की आराधना की जाती थी, तब दाऊद का मित्र हूशय जो अर्की जाति का था, उससे भेंट करने के लिए आया। उसका अंगरखा फटा हुआ था। उसके सिर पर धूल थी।
33 दाऊद ने उससे कहा, ‘यदि तुम मेरे साथ जाओगे तो मेरे लिए भार बन जाओगे।
34 परन्तु यदि तुम यरूशलेम नगर लौट जाओ, और अबशालोम से यह कहो, “महाराज, मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। जैसे मैं पहले आपके पिता का सेवक था वैसे अब मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ”, तो तुम मेरे लिए अहीतोफल की सम्मति निष्फल कर दोगे।
35 वहाँ पुरोहित सादोक और एबयातर भी तुम्हारे साथ होंगे। जो बातें तुम राज-महल में सुनोगे उन्हें तुम पुरोहित सादोक और एबयातर को बता देना।
36 देखो, वहाँ उनके साथ उनके दो पुत्र भी हैं: सादोक का पुत्र अहीमास, और एबयातर का पुत्र योनातन। जो बातें तुम सुनोगे, उनको इन्हीं के हाथ मुझे पहुँचा देना।’
37 अत: दाऊद के मित्र हूशय ने यरूशलेम नगर में प्रवेश किया। उस समय अबशालोम भी नगर में प्रवेश कर रहा था।